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पूज्य आचार्य अमृतचन्द्र की दृष्टि एक विलक्षण प्रतिभा से युक्त थी। आचार्य भगवन्त कुन्दकुन्द के लगभग 1000 वर्ष पश्चात् उनके आध्यात्मिक ग्रन्थ समयसार प्रवचनसार और पंचास्तिकाय की टीका यदि आचार्य अमृमचन्द्र ने नहीं की होती तो आचार्य कुन्दकुन्द के रहस्य को समझना बहुत कठिन हो जाता। आचार्य कुन्दकुन्द के अन्तस्तत्व को आचार्य अमृतचन्द्र ने जिस सूक्ष्म अन्वेषणता और गाम्भीर्य से स्पष्ट किया है वह अनुपम, अतुल्य और अनोखा है। अध्यात्मवेत्ता विद्वानों में आचार्य कुन्दकुन्द के पश्चात् यदि आदरपूर्वक किसी का नाम लिया जा सकता है तो वे आचार्य अमृतचन्द्र सूरि ही हैं। उनकी टीकाओं और मौलिक ग्रन्थों को देखकर पता है कि वे कितने निस्पृही और आध्यात्मिक आचार्य थे। संस्कृत काव्य रचनाकारां में महाकवि कालिदास के ग्रन्थों के रहस्योद्घाटक टीकाकार मल्लिनाथ का जो स्थान है वही स्थान आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के टीकाकार आचार्य अमृतचन्द्र का है। निश्चित रूप से आचार्य अमृतचन्द्र महान् व्यक्तित्व के धनी थे।