जैन धर्म-दर्शन में आपका स्वागत है।
आलेख
जैन दर्शन में वर्णित सल्लेखना और श्रावक हेतु सल्लेखना सोपन
मुख्य बिन्दु 1 प्रस्तावना 2 परिभाषा 3 सल्लेखना कौन और कब करे 4 सल्लेखना का उद्देश्य/ प्रयोजन 5 सल्लेखना के भेद 6 श्रावक को सल्लेखना के सोपान 7 सल्लेखना का महत्व एवं फल 8 सल्लेखना में लगने बाले अतिचार 9 उपसंहार आदि प्रस्तावना – यह यथार्थ है कि समस्त भारतीय दर्शनों के सिद्धान्तों की व्याख्याओं पर समग्रता से विचार किया जाये तो स्वत एव जैनदर्शन अद्वतीय’ पृथक सर्वोत्कृष्ट एवं सत्य प्रतीत होता है। इस प्रतीति…
षट्शती में अंलकार योजना
प्रस्तावना – षड़ ऋतुओं के समुच्चय से जिस प्रकार एक वर्ष की प्राकृतिक सृष्टि होती है वैसे ही छः काव्य शतकों के समुच्चय से षट्शती‘‘ का प्रणयन हुआ है। वर्तमान के वर्द्धमान ,मोही प्राणिये’ के मोहान्धकार को नष्ट करने में सतत प्रवर्तमान, ज्ञान – सूर्य समपरम तेजस्वी एवं जन-जन मन को निज रत्नत्रय से ,आकर्षित ,हर्षित एवं आन्दोलित करने बाले , साधु सम्राट आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के संस्क्रत भाषा पर अधिकार को…
ज्ञानार्णव ग्रन्थ में लोकधर्म
मुख्य बिन्दु- 1-प्रस्तावना‘ 2-कृतिकार के व्यक्तित्व में जीवन दर्शन‘ 3- मंगलाचरण में लोकधर्म‘ 4-एकत्व भावना में जीवनदर्शन‘ 5- अशुचि भावना में जीवन दर्शन‘ 6- ध्यान में लो धर्म‘ 7- अहिंसा व्रत में जीवनदर्शन‘ 8- सत्यव्रत में जीवनदर्शन‘ 9- ब्रहान्चर्य में जीवन दर्शन‘ 10- स्त्री स्वरूप‘ 11- वृद्ध सेवा‘ परिग्रह त्याग में जीवनदर्शन6 12- प्राणायाम व ध्यान में जीवनदर्शन‘ 13- इन भावनाओं को जन सामान्य तक पहुुॅंचाने का उपाय‘ 14- उपसंहार प्रस्तावना-वर्तमान के भौतिक युग में…
हमारे बारे में
संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज एवं निर्यापक श्रमण मुनि श्री 108 सुधासागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद एवं प्रेरणा से संचालित
श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान सांगानेर जयपुर(राज.)
की स्थापना को 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं अतः रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य पर-
जैन धर्म दर्शन की प्रामाणिक व्याख्या के लिए संकल्पित।