Category: शास्त्री राकेश जैन भारिल्ल

जैन दर्शन में वर्णित सल्लेखना और श्रावक हेतु सल्लेखना सोपन

मुख्य बिन्दु 1 प्रस्तावना 2 परिभाषा 3 सल्लेखना कौन और कब करे 4 सल्लेखना का उद्देश्य/ प्रयोजन 5 सल्लेखना के भेद 6 श्रावक को सल्लेखना के सोपान 7 सल्लेखना का महत्व एवं फल 8 सल्लेखना में लगने बाले अतिचार 9 उपसंहार आदि प्रस्तावना – यह यथार्थ है कि समस्त भारतीय दर्शनों के सिद्धान्तों की व्याख्याओं […]

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षट्शती में अंलकार योजना

प्रस्तावना – षड़ ऋतुओं के समुच्चय से जिस प्रकार एक वर्ष की प्राकृतिक सृष्टि होती है वैसे ही छः काव्य शतकों के समुच्चय से षट्शती‘‘ का प्रणयन हुआ है। वर्तमान के वर्द्धमान ,मोही प्राणिये’ के मोहान्धकार को नष्ट करने में सतत प्रवर्तमान, ज्ञान – सूर्य समपरम तेजस्वी एवं जन-जन मन को निज रत्नत्रय से ,आकर्षित […]

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औपशमिक आदि पाँच भावों का विवेचन

प्रस्तावना – भाव प्राणी की एक मनोवैज्ञानिक दशा है जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में विचार कर सकते हैं लेकिन विचार शब्द भाव का पूर्णत: पर्याय शब्द नहीं कहा जा सकता ग्रंथराज राजवार्तिक में “भवनं भवतीति भावः” होना मात्र या जो होता है सो भाव है, ऐसा कहा है।धवला जी ग्रंथ के अनुसार “भवनं भावः” अथवा “भूतिर्भाव:” […]

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औपशमिक आदि पाँच भावों का वर्णन

भाव प्राणी की एक मनोवैज्ञानिक दशा है जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में विचार कर सकते हैं लेकिन विचार शब्द भाव का पूर्णत: पर्याय शब्द नहीं कहा जा सकता ग्रंथराज राजवार्तिक में “भवनं भवतीति भावः” होना मात्र या जो होता है सो भाव है, ऐसा कहा है।धवला जी ग्रंथ के अनुसार “भवनं भावः” अथवा “भूतिर्भाव:” इस प्रकार भाव शब्द की व्युत्पत्ति की गई

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