मुख्य बिन्दु 1 प्रस्तावना 2 परिभाषा 3 सल्लेखना कौन और कब करे 4 सल्लेखना का उद्देश्य/ प्रयोजन 5 सल्लेखना के भेद 6 श्रावक को सल्लेखना के सोपान 7 सल्लेखना का महत्व एवं फल 8 सल्लेखना में लगने बाले अतिचार 9 उपसंहार आदि प्रस्तावना – यह यथार्थ है कि समस्त भारतीय दर्शनों के सिद्धान्तों की व्याख्याओं […]
Read Moreप्रस्तावना – भाव प्राणी की एक मनोवैज्ञानिक दशा है जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में विचार कर सकते हैं लेकिन विचार शब्द भाव का पूर्णत: पर्याय शब्द नहीं कहा जा सकता ग्रंथराज राजवार्तिक में “भवनं भवतीति भावः” होना मात्र या जो होता है सो भाव है, ऐसा कहा है।धवला जी ग्रंथ के अनुसार “भवनं भावः” अथवा “भूतिर्भाव:” […]
Read More‘रयणकंडो’ आचार्य श्री वसुनन्दी जी महाराज द्वारा विरचित एक सूक्तिकोश है। यह ग्रन्थ मूलत: प्राकृत भाषा में निबद्ध है, पर साथ ही ग्रन्थ की सम्पादिका पूज्य आर्यिका श्री वर्धस्वनन्दनी माताजी ने समय की मांग को देखते हुए इसे हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत किया है, जिससे सुधी पाठकों को तीन भाषाओं का परिचय […]
Read Moreपूज्य आचार्य अमृतचन्द्र की दृष्टि एक विलक्षण प्रतिभा से युक्त थी। आचार्य भगवन्त कुन्दकुन्द के लगभग 1000 वर्ष पश्चात् उनके आध्यात्मिक ग्रन्थ समयसार प्रवचनसार और पंचास्तिकाय की टीका यदि आचार्य अमृमचन्द्र ने नहीं की होती तो आचार्य कुन्दकुन्द के रहस्य को समझना बहुत कठिन हो जाता। आचार्य कुन्दकुन्द के अन्तस्तत्व को आचार्य अमृतचन्द्र ने जिस […]
Read Moreभाव प्राणी की एक मनोवैज्ञानिक दशा है जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में विचार कर सकते हैं लेकिन विचार शब्द भाव का पूर्णत: पर्याय शब्द नहीं कहा जा सकता ग्रंथराज राजवार्तिक में “भवनं भवतीति भावः” होना मात्र या जो होता है सो भाव है, ऐसा कहा है।धवला जी ग्रंथ के अनुसार “भवनं भावः” अथवा “भूतिर्भाव:” इस प्रकार भाव शब्द की व्युत्पत्ति की गई
Read Moreप. राकेश जैन शास्त्री “भारिल्ल” आलेख – राकेश जैन शास्त्री
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