Author: Adminjaindharm@2020

जैन दर्शन में वर्णित सल्लेखना और श्रावक हेतु सल्लेखना सोपन

मुख्य बिन्दु 1 प्रस्तावना 2 परिभाषा 3 सल्लेखना कौन और कब करे 4 सल्लेखना का उद्देश्य/ प्रयोजन 5 सल्लेखना के भेद 6 श्रावक को सल्लेखना के सोपान 7 सल्लेखना का महत्व एवं फल 8 सल्लेखना में लगने बाले अतिचार 9 उपसंहार आदि प्रस्तावना – यह यथार्थ है कि समस्त भारतीय दर्शनों के सिद्धान्तों की व्याख्याओं […]

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षट्शती में अंलकार योजना

प्रस्तावना – षड़ ऋतुओं के समुच्चय से जिस प्रकार एक वर्ष की प्राकृतिक सृष्टि होती है वैसे ही छः काव्य शतकों के समुच्चय से षट्शती‘‘ का प्रणयन हुआ है। वर्तमान के वर्द्धमान ,मोही प्राणिये’ के मोहान्धकार को नष्ट करने में सतत प्रवर्तमान, ज्ञान – सूर्य समपरम तेजस्वी एवं जन-जन मन को निज रत्नत्रय से ,आकर्षित […]

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ज्ञानार्णव ग्रन्थ में लोकधर्म

मुख्य बिन्दु- 1-प्रस्तावना‘ 2-कृतिकार के व्यक्तित्व में जीवन दर्शन‘ 3- मंगलाचरण में लोकधर्म‘ 4-एकत्व भावना में जीवनदर्शन‘ 5- अशुचि भावना में जीवन दर्शन‘ 6- ध्यान में लो धर्म‘ 7- अहिंसा व्रत में जीवनदर्शन‘ 8- सत्यव्रत में जीवनदर्शन‘ 9- ब्रहान्चर्य में जीवन दर्शन‘ 10- स्त्री स्वरूप‘ 11- वृद्ध सेवा‘ परिग्रह त्याग में जीवनदर्शन6 12- प्राणायाम व […]

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औपशमिक आदि पाँच भावों का विवेचन

प्रस्तावना – भाव प्राणी की एक मनोवैज्ञानिक दशा है जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में विचार कर सकते हैं लेकिन विचार शब्द भाव का पूर्णत: पर्याय शब्द नहीं कहा जा सकता ग्रंथराज राजवार्तिक में “भवनं भवतीति भावः” होना मात्र या जो होता है सो भाव है, ऐसा कहा है।धवला जी ग्रंथ के अनुसार “भवनं भावः” अथवा “भूतिर्भाव:” […]

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रयणकंडो में मानवजीवन और नैतिक आचरण : एक अध्ययन

‘रयणकंडो’ आचार्य श्री वसुनन्दी जी महाराज द्वारा विरचित एक सूक्तिकोश है। यह ग्रन्थ मूलत: प्राकृत भाषा में निबद्ध है, पर साथ ही ग्रन्थ की सम्पादिका पूज्य आर्यिका श्री वर्धस्वनन्दनी माताजी ने समय की मांग को देखते हुए इसे हिन्दी एवं अंग्रेजी अनुवाद के साथ प्रस्तुत किया है, जिससे सुधी पाठकों को तीन भाषाओं का परिचय […]

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आचार्य अमृतचन्द्र की दृष्टि में मुनिधर्म

पूज्य आचार्य अमृतचन्द्र की दृष्टि एक विलक्षण प्रतिभा से युक्त थी। आचार्य भगवन्त कुन्दकुन्द के लगभग 1000 वर्ष पश्चात् उनके आध्यात्मिक ग्रन्थ समयसार प्रवचनसार और पंचास्तिकाय की टीका यदि आचार्य अमृमचन्द्र ने नहीं की होती तो आचार्य कुन्दकुन्द के रहस्य को समझना बहुत कठिन हो जाता। आचार्य कुन्दकुन्द के अन्तस्तत्व को आचार्य अमृतचन्द्र ने जिस […]

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औपशमिक आदि पाँच भावों का वर्णन

भाव प्राणी की एक मनोवैज्ञानिक दशा है जिसे मनोवैज्ञानिक भाषा में विचार कर सकते हैं लेकिन विचार शब्द भाव का पूर्णत: पर्याय शब्द नहीं कहा जा सकता ग्रंथराज राजवार्तिक में “भवनं भवतीति भावः” होना मात्र या जो होता है सो भाव है, ऐसा कहा है।धवला जी ग्रंथ के अनुसार “भवनं भावः” अथवा “भूतिर्भाव:” इस प्रकार भाव शब्द की व्युत्पत्ति की गई

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